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Showing posts from 2017

Engineering Economics

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When I saw her....  Marginal utility increased.  Intertemporal choice and  My preference was revealed. With optimal combination,  I paced forth...  She was as precious as the  Net present Worth..  Her curls were more tempting  Than the short run curves.  Her killer smile is what,  This risk lover loves.  I try to express,  But each time I fail...  I can't be as straight As constant return to scale. When externalities come between us I get jealous & ignite..  You are not a common property  Such that everyone will claim the property right.  But when u smile to me All my anger change to bliss But you love me or not  is still a testing hypothesis -Deepak Kumar Sahu

A Strong Guilt

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A STRONG GUILT...  Happy Birthday Pawan  I don't remember the reason for our fight Not even, how the quarrel ignite The fight between us preceded further As I slapped my only loving brother He made it sure didn't talk to me anymore. It miffed me more, than before It was our ego and rage that clashed Tears, of both of us, splashed Silence between us made me so sick I recalled the past and became nostalgic It was April 8, When I first saw him with snow white legs and closed fingers As like the aroma of a sleeping beauty lingers I was moved by his open mouth and glowing charm So delicately, I took him in my arms I kissed him on his soft cheeks Those days, he was cute and I was meek I took pride of being an elder brother those days I used to cry when others pretended to take him away I came to the present scenario in the meanwhile Remembering his baby face gave me a short

छिप - छिपकर रोता हूँ...

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छिप - छिपकर रोता हूँ… मैंने गीत लिखना छोड़ दिया क्यूँ? ऐ सनम ये ना पूछ । अब नहीं लिख पाता हूँ तेरे नाम के अलावा कुछ । अपने दामन में खुद ही, आँसू के बीज बोता हूँ । आज भी अकेले में, छिप - छिपकर रोता हूँ । ये गुस्सा एक आवरण है, मुझे पता है रुठा मेरा यार नहीं है । दिल पे हाथ रख के पूछा था झूठा मेरा प्यार नहीं है । यूँ जब से तू रुठी है, तब से कहाँ मैं सोता हूँ । आज भी अकेले में, छिप - छिपकर रोता हूँ । तेरे जाने की तड़प और आने की आश मेरे नयन तक रहे। मेरी खुशी और गम की दास्तान तेरे चयन तक रहे। आज भी तेरी उस तस्वीर में, वैसे ही खोता हूँ । आज भी अकेले में, छिप - छिपकर रोता हूँ । चाँद को आधा देखकर सितारों के साथ, बुरा लगता है । जैसे तेरे साथ बिना ये हाथ अधूरा लगता है । इस अधूरेपन का बोझ, अकेले ही ढ़ोता हूँ । आज भी अकेले में, छिप - छिपकर रोता हूँ । दुनिया कहती है तेरी यादों ने मुझे बर्बाद किया है । ना जाने फिर क्यूँ मैंने ख़ुदा से ज्यादा तुझे याद किया है । जो मेरे ना हो सके, उन यादों को आज भी संजोता हूँ

ये होली ना भाय रे ।

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ये होली ना भाय रे Drawn By : Deepak Sahu Art By : Amrita Pattnaik  आ गई  है पूर्णिमा इस फ़ाल्गुन की । आ रही है याद बड़ी वृंदावन में निर्गुन की । होली की उमंग में भी दुख के बादल छाए रे। हे कान्हा, तुम बिन ये होली ना भाय रे । अब किसी को रंग लगाने ये हाथ बढ़ेगा नहीं । तू जो ना तो केशव किसी का रंग चढ़ेगा नहीं । अब इस ललाट पर केवल सखियाँ रंग लगाए रे। हे कान्हा, तुम बिन ये होली ना भाय रे । इतना भी नशा नहीं आज होली के भंग में । जितनी मदहोशी होती थी वृंदावन में, तेरे संग में । होली में लोग भले ही ढ़ोल मंजिरा बजाए रे। हे कान्हा, तुम बिन ये होली ना भाय रे । प्रजा तुम्हारी गा रही है होली में फगुआ। कान्हा कृष्णा जप रहा है मन रुपी ये सुगुआ। ना जोगीरा, ना फगुआ, दिल बिरह के गीत गाए रे। हे कान्हा, तुम बिन ये होली ना भाय रे । कृष्णा तेरी याद में बीत गया एक बरस। तेरे एक दरस को मनवा गया तरस। तेरे बिना वृंदावन में रास कौन रचाए रे। हे कान्हा, तुम बिन ये होली ना भाय रे । मन बेचैन हो उठता था तेरी बोली सुनक

और शाम ढ़ल गई...

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और शाम ढ़ल गई… Drawn By : Amrita Patnaik मेरी निगाहें और ये राहें एक दूसरे से सवाल कर रही है। तुम आओगी या नहीं, ये पूछकर मेरा हाल बेहाल कर रही है । इन्हीं सवालों में, घड़ी की सुई                                     आगे चल गई। और शाम ढ़ल गई । तुम आओगी, तुम्हारे वादे पर इतना एतबार क्यूँ है? बहुत सताती हो फिर भी तुमसे इतना प्यार क्यूँ है? शायद तेरी मुस्कान पर ही ये मोहब्बत पल गई । और शाम ढ़ल गई । दुनिया रुलाए जब, तब आँसू मैं तेरे बाहों में बहाता हूँ । दुख भुलाने, खुशियाँ मनाने इन वादियों में आता हूँ। तेरे इंतजार में ही, आँखों की ये जमीं बूँदें,  पिघल गई । और शाम ढ़ल गई । वो गुलाब जो तुम्हारे लिए लाया था मुरझाने लगी है । अंँधेरा मुझे सौंपकर रोशनी भी जाने लगी है । जाते - जाते रोशनी, करके मेरा कतल गई। और शाम ढ़ल गई । पता है, सब कुछ होते हुए भी हम आधे - अधूरे कैसे हैं? बिना रंग भरे छोड़ गया कोई उस तस्वीर जैसे हैं । ये भीड़ में अकेलेपन की रुसवाई मुझे अंदर से खल गई । और शाम ढ़ल गई । धुंध हटेगी और तेर

A Tribute To Our Soldiers

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मेरा सलाम है... पठानकोट से जब शाहदत की खबर आई थी । देश में मेरे पूरी तरह छाई रुसवाई थी। उन वीरों को मेरा सलाम है । देश के फौज पर मुझे गुमान है । एक पिता का कहना था : एक और बेटा फौज में है। पोते को भी भेजूँगा। देश का ऋण चुकाने को, सारा लहू दे दूँगा । उस पिता के वचन को मेरा सलाम है । देश के फौज पर मुझे गुमान है । बेटे के शव पर उस माँ का बिलखना। सूनी उसकी गोद में उस दर्द़ का दिखना। ममता के उन आँसू को मेरा सलाम है । देश के फौज पर मुझे गुमान है । कहीं एक तीन साल की बच्ची को कुछ पता नहीं, उसे लगता है पापा आएँगे। शहर के मेले से उसके लिए, मँहगी गुड़िया लाएँगे। उस बेटी के विश्वास को मेरा सलाम है । देश के फौज पर मुझे गुमान है । कहीं मेंहदी के रंग से पहले, लाल सिंदूर उतर गया। सात जनम के साथी को इतना दूर कर गया । काँच की चूड़ियों के, उन टुकड़ों को मेरा सलाम है । देश के फौज पर मुझे गुमान है । गाँव में उसके चार यार, पाँच गिलास, जाम तैयार कर रहे थे। छुट्टी के बाद अपने फौजी, यार का इंतजार कर रहे थे। उस ज