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और शाम ढ़ल गई...

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और शाम ढ़ल गई… Drawn By : Amrita Patnaik मेरी निगाहें और ये राहें एक दूसरे से सवाल कर रही है। तुम आओगी या नहीं, ये पूछकर मेरा हाल बेहाल कर रही है । इन्हीं सवालों में, घड़ी की सुई                                     आगे चल गई। और शाम ढ़ल गई । तुम आओगी, तुम्हारे वादे पर इतना एतबार क्यूँ है? बहुत सताती हो फिर भी तुमसे इतना प्यार क्यूँ है? शायद तेरी मुस्कान पर ही ये मोहब्बत पल गई । और शाम ढ़ल गई । दुनिया रुलाए जब, तब आँसू मैं तेरे बाहों में बहाता हूँ । दुख भुलाने, खुशियाँ मनाने इन वादियों में आता हूँ। तेरे इंतजार में ही, आँखों की ये जमीं बूँदें,  पिघल गई । और शाम ढ़ल गई । वो गुलाब जो तुम्हारे लिए लाया था मुरझाने लगी है । अंँधेरा मुझे सौंपकर रोशनी भी जाने लगी है । जाते - जाते रोशनी, करके मेरा कतल गई। और शाम ढ़ल गई । पता है, सब कुछ होते हुए भी हम आधे - अधूरे कैसे हैं? बिना रंग भरे छोड़ गया कोई उस तस्वीर जैसे हैं । ये भीड़ में अकेलेपन की रुसवाई मुझे अंदर से खल गई । और शाम ढ़ल गई । धुंध हटेगी और तेर